दवा से दर्द औ' दिल से वो इक चेहरा छुपाते हैं ।
वो कैसे हैं अदावत भी जो शिद्दत से निभाते हैं ॥
यही थी शर्त जीने की, कि फिर वापस न लौटेंगे ।
मगर सच ये कि वो अब भी ख़यालों में सताते हैं ॥
हुआ अहसास इतना ही जो तोडा गुल को टहनी से ।
किसी की मुस्कुराहट को किसी का घर जलाते हैं ॥
पतंग उड़ती हवा में ज़िन्दगी की कटके गिरनी है ।
ये हमको देखना होगा, किसे कैसे बचाते हैं ॥
मुहब्बत में नसीब इतना हुआ तुमको 'सलिल' कहना ।
अजल की राह के काँटे भी अब मरहम लगाते हैं ॥
[[ अदावत - दुश्मनी, अजल - मृत्यु ]]
आशीष नैथानी 'सलिल'... जून,५/२०१३ (हैदराबाद)
वो कैसे हैं अदावत भी जो शिद्दत से निभाते हैं ॥
यही थी शर्त जीने की, कि फिर वापस न लौटेंगे ।
मगर सच ये कि वो अब भी ख़यालों में सताते हैं ॥
हुआ अहसास इतना ही जो तोडा गुल को टहनी से ।
किसी की मुस्कुराहट को किसी का घर जलाते हैं ॥
पतंग उड़ती हवा में ज़िन्दगी की कटके गिरनी है ।
ये हमको देखना होगा, किसे कैसे बचाते हैं ॥
मुहब्बत में नसीब इतना हुआ तुमको 'सलिल' कहना ।
अजल की राह के काँटे भी अब मरहम लगाते हैं ॥
[[ अदावत - दुश्मनी, अजल - मृत्यु ]]
आशीष नैथानी 'सलिल'... जून,५/२०१३ (हैदराबाद)
वाह बेहद सुन्दर लाजवाब ग़ज़ल मित्रवर हार्दिक बधाई स्वीकारें.
ReplyDeleteआपकी यह रचना कल शनिवार (15 -06-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
बहुत-बहुत शुक्रिया भाई अरुण जी ।
ReplyDelete"ब्लॉग प्रसारण" अपने आप में अनोखा ब्लॉग है, वहाँ विचरण करके अच्छा लगा।