तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Monday 26 June 2017

तुम्हारे होने का अहसास

रात अब कभी ख़ामोश नहीं लगती
दिन नहीं करता बेचैन
जो तुम्हारे साथ होने का अहसास साथ हो

अब किसी गीत को सुनते हुए
उसके बोलों की तरफ़ ध्यान नहीं जाता
बल्कि एक पूरी फ़िल्म दिमाग में चलने लगती है
महसूस होता है कि तुम्हारे लिए ही लिखे गये हैं सारे गीत
सारे शब्द तुम्हारा ज़िक्र करने के लिए बने हैं
धुनें हैं कि तुम्हारी कुछ मासूम सी हरकतें

अचानक आसमान कुछ और नीला हो गया है
तारों का प्रकाश बढ़ गया है कई सौ गुना
बर्फ़ अब भला और कितनी सफ़ेद होना चाहती है
और चाँद है कि महीने के हर दिन पूरा निकलना चाह रहा है

शाखों ने सजा ली हैं हरी पत्तियाँ
भौरों ने याद कर लिए हैं नए गीत
तितलियों ने रँग दिए हैं पर कुछ और खूबसूरत रंगों से
और शहर से हो गया है इश्क़ सा कुछ

जनवरी अब वैसी सर्द नहीं रही
न रही बारिश में छाते की जरुरत अब
तुम्हारे होने के अहसास से,
मैं भी अब कहाँ पहले सा रह गया हूँ ।

© आशीष नैथानी !!

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